ट्रांसपर्सनल मनोविज्ञान (Transpersonal Psychology) मनोविज्ञान की एक ऐसी शाखा है जो आत्मा, चेतना और आध्यात्मिक अनुभवों को मानव अनुभव के हिस्से के रूप में समझती है। यह दृष्टिकोण व्यक्ति को संपूर्णता में देखता है – शरीर, मन, आत्मा और संबंधों के साथ।
यह पद्धति 1960 के दशक में तब विकसित हुई जब पारंपरिक मनोविज्ञान को आत्मिक और रहस्यात्मक अनुभवों की अनदेखी करने वाला समझा गया। ट्रांसपर्सनल मनोविज्ञान मानता है कि व्यक्ति केवल मनोवैज्ञानिक इकाई नहीं है, बल्कि उसमें किसी उच्चतर चेतना से जुड़ने की क्षमता भी होती है।
ध्यान, प्रार्थना, स्वप्न विश्लेषण, कल्पना और कभी-कभी साइकेडेलिक अनुभव जैसे साधनों का उपयोग करके व्यक्ति को अपने भीतर झाँकने और गहराई से समझने का अवसर दिया जाता है। यह आत्म-विकास और जीवन में उद्देश्य की खोज में सहायक होता है।
इस दृष्टिकोण की विशेषता यह है कि यह किसी विशेष धर्म या परंपरा से बंधा नहीं होता। यह विभिन्न सांस्कृतिक और आध्यात्मिक परंपराओं से विधियाँ अपनाकर व्यक्ति को उसकी आंतरिक यात्रा में सहयोग देता है।
प्रमुख अवधारणाओं में 'आत्मिक संकट', 'परिवर्तित चेतना की स्थिति', 'अलौकिक आत्म' और 'सामूहिक अचेतन' शामिल हैं। यह विधा अन्य क्षेत्रों जैसे दर्शन, नृविज्ञान और तंत्रिका-विज्ञान से भी प्रेरणा लेती है।
अंततः, ट्रांसपर्सनल मनोविज्ञान एक ऐसा माध्यम है जो व्यक्ति को गहरे स्तर पर आत्म-समझ, संतुलन और जीवन में गहनता प्राप्त करने में सहायता करता है।