सैंडप्ले थेरेपी (Sandplay Therapy) एक ऐसी चिकित्सा पद्धति है जिसमें व्यक्ति रेत और छोटी-छोटी आकृतियों (फिग्योरिन्स) की मदद से अपनी भावनाओं और आंतरिक दुनिया को बिना शब्दों के अभिव्यक्त करता है। यह विशेष रूप से बच्चों के लिए प्रभावी मानी जाती है, लेकिन वयस्कों में भी इसका प्रयोग सकारात्मक परिणाम देता है।
थेरेपी सत्र के दौरान व्यक्ति को आमंत्रित किया जाता है कि वह एक छोटी रेत की पेटी में अपनी कल्पनाओं के अनुसार एक "दुनिया" बनाए, जिसमें वह विभिन्न प्रतीकों — जैसे इंसान, जानवर, मकान, पेड़ आदि — का प्रयोग करता है। यह रचनात्मक प्रक्रिया उसकी गहरी भावनाओं, अनकहे अनुभवों और अवचेतन मन की झलक प्रदान करती है।
इस पद्धति की नींव कार्ल युंग की विश्लेषणात्मक मनोविज्ञान (Analytical Psychology) पर आधारित है, जिसमें यह माना जाता है कि प्रतीक (symbols) अवचेतन और चेतन मन के बीच पुल का काम करते हैं। थेरेपिस्ट व्यक्ति की इस प्रतीकात्मक रचना को सावधानीपूर्वक देखता है, लेकिन उसे किसी दिशा में नहीं ले जाता — प्रक्रिया पूरी तरह व्यक्ति-केंद्रित होती है।
सैंडप्ले थेरेपी का उपयोग ट्रॉमा, अवसाद, चिंता, संबंधों में समस्या, शोक और आत्म-सम्मान की कमी जैसे मुद्दों के लिए किया जाता है। यह उन लोगों के लिए बहुत फायदेमंद है जो बोलकर अपनी भावनाएं व्यक्त करने में कठिनाई महसूस करते हैं।
इस प्रक्रिया में कोई सही या गलत नहीं होता; यह एक खुला, सहज और सुरक्षित वातावरण प्रदान करती है जिसमें व्यक्ति खुद को धीरे-धीरे खोजता है। कई बार, जिन बातों को शब्दों में व्यक्त करना मुश्किल होता है, वे रेत और आकृतियों के माध्यम से सहज रूप से बाहर आ जाती हैं।
संक्षेप में, सैंडप्ले थेरेपी एक ऐसी विधि है जो व्यक्ति को अपनी आत्मा की गहराइयों से जोड़ती है और उसकी रचनात्मकता व आत्म-उपचार की शक्ति को जागृत करती है। यह एक संवेदनशील, सहायक और प्रभावशाली चिकित्सा प्रक्रिया है।