पर्सन-सेंटर्ड थेरेपी (Person-Centered Therapy), जिसे क्लाइंट-सेंटर्ड थेरेपी भी कहा जाता है, एक मानवीय (ह्यूमनिस्टिक) परिप्रेक्ष्य वाली मनोचिकित्सा है जो व्यक्ति के निजी अनुभव, भावनाओं और आत्मबोध पर केंद्रित होती है। इस थेरेपी का विकास 1950 के दशक में अमेरिकी मनोवैज्ञानिक कार्ल रोजर्स द्वारा किया गया था।
इस दृष्टिकोण का मूल सिद्धांत यह है कि प्रत्येक व्यक्ति के अंदर आत्म-विकास और परिवर्तन की स्वाभाविक क्षमता होती है, यदि उसे एक स्वीकार्य, सहानुभूतिपूर्ण और सुरक्षित वातावरण प्रदान किया जाए। इसमें चिकित्सक का कार्य मार्गदर्शन देने का नहीं, बल्कि सहायक और संवेदनशील उपस्थिति प्रदान करने का होता है, जिससे व्यक्ति स्वयं अपनी समस्याओं को समझे और हल करे।
पर्सन-सेंटर्ड थेरेपी में तीन प्रमुख तत्व होते हैं: बिना शर्त सकारात्मक स्वीकृति (unconditional positive regard), सहानुभूति (empathy), और प्रामाणिकता (authenticity)। बिना शर्त स्वीकृति का मतलब है कि चिकित्सक व्यक्ति को उसकी सभी भावनाओं, कमजोरियों और संघर्षों के साथ पूर्ण रूप से स्वीकार करता है। सहानुभूति में चिकित्सक व्यक्ति की भावनाओं और नजरियों को गहराई से समझने का प्रयास करता है और उसे सही ढंग से प्रतिबिंबित करता है। प्रामाणिकता का तात्पर्य है कि चिकित्सक ईमानदार, पारदर्शी और स्वाभाविक तरीके से जुड़ता है।
इस प्रकार का उपचार उन लोगों के लिए फायदेमंद होता है जो जजमेंट-फ्री वातावरण में अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त करना चाहते हैं और खुद को बेहतर समझना चाहते हैं। यह थेरेपी डिप्रेशन, चिंता, आत्म-संदेह, पहचान संकट जैसे मानसिक स्वास्थ्य मुद्दों में सहायक हो सकती है।
पर्सन-सेंटर्ड थेरेपी एक सशक्त तरीका है जो व्यक्ति को आत्म-स्वीकृति की ओर ले जाता है, आत्मसम्मान को बढ़ाता है और जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाने में मदद करता है। यह प्रक्रिया गहराई से आत्मनिरीक्षण को प्रोत्साहित करती है और व्यक्ति को अपनी आंतरिक क्षमताओं से जुड़ने में सक्षम बनाती है।