नैरेटिव थेरेपी (Narrative Therapy) एक अनोखी मनोवैज्ञानिक पद्धति है, जो इस विचार पर आधारित है कि हम अपने जीवन के बारे में जो कहानियाँ बनाते और बताते हैं, वही हमारी पहचान, आत्म-संवेदना और भावनात्मक अनुभव को आकार देती हैं। यदि ये कहानियाँ नकारात्मक, सीमित करने वाली या दर्दनाक हों, तो वे हमारे मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकती हैं। इस थेरेपी का उद्देश्य इन कहानियों को पहचानना, उन्हें चुनौती देना और उन्हें नए, सशक्त रूप में पुनः रचना करना है।
इस प्रक्रिया में व्यक्ति अपने जीवन की घटनाओं, अनुभवों और संघर्षों को विस्तार से साझा करता है। थेरेपिस्ट ध्यानपूर्वक सुनते हैं और प्रमुख विषयों, दोहराव वाले पैटर्न और आत्म-धारणाओं की पहचान करने में सहायता करते हैं। फिर, व्यक्ति को प्रेरित किया जाता है कि वह वैकल्पिक, सकारात्मक दृष्टिकोण से अपनी कहानी को दोबारा गढ़े — इस प्रक्रिया को "री-ऑथरिंग" कहा जाता है।
नैरेटिव थेरेपी का मूल सिद्धांत यह है कि व्यक्ति उसकी समस्याओं से परिभाषित नहीं होता। उदाहरण के लिए, "मैं अवसादग्रस्त हूँ" की जगह "मैं अवसाद से जूझ रहा हूँ" कहना अधिक उपयुक्त माना जाता है। इससे व्यक्ति को उसकी समस्याओं से अलग कर देखा जाता है और परिवर्तन की संभावना बनती है — इसे "एक्सटर्नलाइज़ेशन" कहते हैं।
यह थेरेपी व्यक्तिगत, पारिवारिक और सामूहिक सत्रों में उपयोग की जाती है, और यह डिप्रेशन, एंग्ज़ायटी, ट्रॉमा, लत, पहचान-संकट आदि में प्रभावी साबित होती है। यह दृष्टिकोण हर उम्र और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि वाले लोगों के लिए उपयुक्त है।
नैरेटिव थेरेपी व्यक्ति की क्षमताओं, मूल्यों और आंतरिक ताकतों को उभारने पर केंद्रित रहती है। जब व्यक्ति अपनी जीवन-कथा में सशक्त क्षणों को पहचानने लगता है, तो वह अपने भविष्य को भी एक नई आशा और विश्वास से देख पाता है। यही इस थेरेपी की विशेषता है — यह व्यक्ति को अपनी कहानी का रचनाकार बनने की शक्ति प्रदान करती है।