नारीवादी थेरेपी (Feminist Therapy) एक मनोवैज्ञानिक पद्धति है जो यह मानती है कि किसी व्यक्ति की मानसिक स्थिति को समझने और सुधारने के लिए केवल व्यक्तिगत अनुभव नहीं, बल्कि सामाजिक ढांचे, लिंग आधारित भूमिकाएँ, और शक्ति के असंतुलन को भी ध्यान में रखना आवश्यक है। यह थेरेपी इस विचार पर आधारित है कि मानसिक स्वास्थ्य पर समाज की अपेक्षाएं, भेदभाव और असमानता का गहरा प्रभाव पड़ता है।
इस थेरेपी का उद्देश्य व्यक्ति को सशक्त बनाना है — उसे उसकी आवाज़, अधिकार और आत्म-मूल्य को पुनः प्राप्त करने में मदद करना। इसमें पारंपरिक लिंग-भूमिकाओं को चुनौती दी जाती है, और यह समझने में सहायता की जाती है कि समाज द्वारा थोपे गए मानदंड मानसिक तनाव और हीनता की भावना कैसे उत्पन्न कर सकते हैं।
नारीवादी थेरेपी में थेरेपिस्ट और क्लाइंट के बीच समानता पर ज़ोर दिया जाता है। इसका मतलब है कि थेरेपिस्ट निर्णय लेने वाला नहीं, बल्कि साथ में चलने वाला मार्गदर्शक होता है। थेरेपी में माइंडफुलनेस, रचनात्मक अभिव्यक्ति (जैसे कला या लेखन), या सामाजिक संदर्भों की पड़ताल जैसे तरीके अपनाए जा सकते हैं।
यह थेरेपी विशेष रूप से उन लोगों के लिए प्रभावी है जो लैंगिक असमानता, सामाजिक भेदभाव या पहचान से जुड़ी समस्याओं का सामना करते हैं — जैसे महिलाएँ, LGBTQ+ समुदाय, या वे जो पारंपरिक सामाजिक ढाँचों में फिट नहीं बैठते। लेकिन यह पद्धति सभी के लिए खुली है, जो खुद को बेहतर समझना और सामाजिक प्रभावों से मुक्त होकर जीना चाहते हैं।
नारीवादी थेरेपी मानसिक समस्याओं जैसे अवसाद, चिंता, ट्रॉमा, या खानपान से संबंधित विकारों में सहायता कर सकती है। इसका अंतिम उद्देश्य केवल लक्षणों को कम करना नहीं, बल्कि व्यक्ति को उसकी ताकत और आत्म-सम्मान वापस दिलाना होता है, ताकि वह अपने जीवन में सक्रिय भूमिका निभा सके।