पैस्टोरल काउंसलर वह मानसिक स्वास्थ्य सलाहकार है जो मनोविज्ञान के वैज्ञानिक औज़ारों को धार्मिक‑आध्यात्मिक सिद्धांतों के साथ जोड़ता है। भारत में यह भूमिका पुजारी, पादरी, इमाम, ग्रंथी या बौद्ध भिक्षु द्वारा अतिरिक्त परामर्श प्रशिक्षण के बाद निभाई जाती है – या मनोचिकित्सक/मनोवैज्ञानिक, जिन्होंने थिओलॉजी व स्पिरिचुअल केयर में डिप्लोमा लिया हो। उद्देश्य है संपूर्ण व्यक्ति – मस्तिष्क, शरीर, आत्मा – की सुध लेना।
प्रारंभिक मूल्यांकन में क्लाइंट से न सिर्फ अवसाद/घबराहट स्कोर पूछा जाता है, बल्कि • ईश्वर‑छवि (दयालु/दण्डात्मक/अनुपस्थित), • आध्यात्मिक अभ्यास (नमाज़, जाप, स्तुति‑गीत), • समुदाय समर्थन (संगत, युवा प्रार्थना समूह), • अस्तित्ववादी प्रश्न (पाप, मृत्यु, उद्देश्य) प्रदर्शित होते हैं। Spiritual Wellness Scale या Faith Maturity Index से आंकड़े लिए जाते हैं। लक्ष्य उदाहरण: “आठ सत्रों में PHQ‑9 छह अंक कम करना, और प्रतिदिन 5‑मिनट कृतज्ञता प्रार्थना + सी...
उपचार शृंखला: • ग्रंथ व्याख्या थेरेपी – आयूब की कथा से ‘दुख में धैर्य’, भगवद्गीता से ‘कर्म‑योग’, हदीस कुदसी से ‘मैं अपने बंदे के गुमान के अनुसार हूँ’। • रिवर्सल प्रार्थना – नकारात्मक विचार पकड़कर दुआ या मंतर रूप में परिवर्तित करना। • EMDR + जप – ट्रॉमा इमेज प्रसंस्करण के साथ “अल्लाहु” या “रब्बोन्का” जप को सुरक्षा‑लंगर बनाना। • ACT + सब्र/रिश्ता – ‘दर्द’ को गवाही देना, फिर ‘मक़सद’ रक्षा में कदम। • माइंडफुल सज...
नैतिक ढाँचा दोहरा: पेशेवर गोपनीयता + धार्मिक अमानत। काउंसलर स्पष्ट करता है कि वह फतवा नहीं दे रहा; जटिल शरई प्रश्न के लिए मौलवी या क़ाज़ी रिफ़र करेगा। अनिवार्य रिपोर्टिंग (बाल शोषण, चरम आत्महत्या योजना) “जान की हिफाज़त” सिद्धांत के तहत होती है। शक्ति‑संतुलन हेतु नियमित सुपरविज़न – एक सीनियर मनोचिकित्सक व एक वरिष्ठ धार्मिक गुरु के साथ – अनिवार्य है।
प्रशिक्षण मार्ग: BA थिओलॉजी/मानसिक स्वास्थ्य + CPE (Clinical Pastoral Education) 400 घंटे, फिर 1000 घंटे सुपरवाइज्ड क्लिनिकल सेवा, उसके बाद बोर्ड सर्टिफिकेशन (AAPC/NACC)। सतत शिक्षा (24 घंटे/वर्ष) में अंतर‑धार्मिक संवाद, धर्म‑आधारित ट्रॉमा, LGBTQIA+ आध्यात्मिक समावेशन, और टेली‑चैप्लेंसी सम्मिलित हैं।
कब चुनें? जब संकट केवल भावनात्मक न हो बल्कि आध्यात्मिक भी हो – गर्भपात के बाद अपराध‑बोध, ईश्वर से असन्तोष, लंबी बीमारी में ‘सज़ा’ का डर, दम्पति‑कलह में धार्मिक मतभेद, प्रियजन की मृत्यु पर विश्वास‑संकट। पैस्टोरल काउंसलर दोहरे औज़ार देता है: मनोवैज्ञानिक हस्तक्षेप + धार्मिक साक्ष्य। इससे उपचार न केवल लक्षण घटाता है, बल्कि आस्था को राहत व नए अर्थ में स्थापित करता है: “शांति जो समझ से परे है।”