
मध्यजीवन संकट (Midlife Crisis) एक मानसिक अवस्था है जो प्रायः 40 से 60 वर्ष की उम्र में उत्पन्न होती है, जब व्यक्ति अपनी उपलब्धियों, पहचान और जीवन के उद्देश्यों के बारे में गहराई से सोचता है। इस दौरान अक्सर यह महसूस होता है कि बची हुई ज़िंदगी सीमित है और समय तेज़ी से बीत रहा है। ऐसे में व्यक्ति अपने अतीत, वर्तमान और भविष्य को लेकर असमंजस और चिंता का शिकार हो सकता है।
मध्यजीवन संकट के दौरान लोग आमतौर पर प्रश्न पूछते हैं: “क्या मैंने अपने सपने पूरे किए?”, “क्या मैं सही रास्ता चुन रहा हूँ?”, “समय रहते मुझे अपने संबंध और करियर में बदलाव लाने चाहिए?”। इन प्रश्नों से उत्पन्न बेचैनी और असंतोष, अचानक बड़े फैसले लेने की प्रवृत्ति को जन्म दे सकता है—जैसे नए शौक अपनाना, नौकरी बदलना, महंगी चीजों की खरीदारी करना या सौंदर्य संबंधी प्रक्रियाएँ कराना।
भावनात्मक लक्षणों में खालीपन, चिड़चिड़ापन, नींद न आना और मूड स्विंग्स शामिल हैं। शारीरिक रूप से तनाव से जुड़ी समस्याएँ जैसे सिरदर्द, धड़कन तेज़ होना और थकान आम हैं। यह स्थिति परिवार और कामकाजी जीवन में संबंधों पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है, क्योंकि व्यक्ति अपना पूरा ध्यान आत्ममंथन में लगा देता है।
मनोवैज्ञानिक सहायता इस स्थिति से निपटने में सहायक होती है। संज्ञानात्मक व्यवहार थेरेपी (CBT) नकारात्मक विचारों को पहचानकर उन्हें सकारात्मक आधार पर बदलने में मदद करती है। समाधान-केंद्रित थेरेपी (Solution-Focused Therapy) छोटे, व्यावहारिक कदम तय करने और प्रगति मापने की रणनीतियाँ देती है। लाइफ कोचिंग करियर और व्यक्तिगत लक्ष्यों की दिशा स्पष्ट करती है।
समर्थन नेटवर्क—जिसमें परिवार, मित्र और मेंटर शामिल हैं—महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। अनुभव साझा करना, सुझाव लेना और भावनात्मक सहारा प्राप्त करना अकेलेपन की भावना को कम करता है। समूह थेरेपी या सपोर्ट ग्रुप्स में मिलकर बात करने से समान अनुभव वाले लोगों के साथ जुड़ाव और समझ विकसित होती है।
व्यावहारिक कदमों में माइंडफुलनेस अभ्यास, नियमित व्यायाम और रचनात्मक गतिविधियाँ शामिल हैं। माइंडफुलनेस और ध्यान तनाव को नियंत्रित करते हैं और व्यक्ति को वर्तमान में रहने में मदद करते हैं। योगा, साइकिल चलाना या किसी टीम स्पोर्ट में भाग लेना शारीरिक स्वास्थ्य सुधारने के साथ-साथ सामाजिक सहभागिता के अवसर भी प्रदान करता है।
नया दृष्टिकोण अपनाना—जैसे स्वयंसेवी कार्य या नई भाषा सीखना—जीवन में ताजगी और उत्साह जगाता है। छोटी-छोटी सफलताएँ आत्मविश्वास बढ़ाती हैं और व्यक्ति को सकारात्मक रूप से प्रभावित करती हैं। इस प्रकार, मध्यजीवन संकट नवोन्मेष और व्यक्तिगत पुनर्जागरण का अवसर बन सकता है।