
बर्नआउट वह अवस्था है जब लगातार काम, जिम्मेदारी और ‘हमेशा उपलब्ध’ रहने की माँग शरीर‑मन की ऊर्जा को चूस लेती है। शुरुआत में यह सोमवार की थकान जैसा लग सकता है, पर धीरे‑धीरे थकान हफ़्तों‑महीनों तक पीछा नहीं छोड़ती; काम से विरक्ति, चिड़चिड़ापन, और ‘कुछ भी मायने नहीं रखता’ भाव का प्रसार होता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे व्यावसायिक संदर्भ से जोड़कर परिभाषित किया है, पर परिवार‑संभाल, शिक्षा, या सामाजिक दायित्व भी समान प्रभाव डाल सकते हैं। भारतीय परिवेश में “सब ... बर्नआउट वह अवस्था है जब लगातार काम, जिम्मेदारी और ‘हमेशा उपलब्ध’ रहने की माँग शरीर‑मन की ऊर्जा को चूस लेती है। शुरुआत में यह सोमवार की थकान जैसा लग सकता है, पर धीरे‑धीरे थकान हफ़्तों‑महीनों तक पीछा नहीं छोड़ती; काम से विरक्ति, चिड़चिड़ापन, और ‘कुछ भी मायने नहीं रखता’ भाव का प्रसार होता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे व्यावसायिक संदर्भ से जोड़कर परिभाषित किया है, पर परिवार‑संभाल, शिक्षा, या सामाजिक दायित्व भी समान प्रभाव डाल सकते हैं। भारतीय परिवेश में “सब . बर्नआउट वह अवस्था है जब लगातार काम, जिम्मेदारी और ‘हमेशा उपलब्ध’ रहने की माँग शरीर‑मन की ऊर्जा को चूस लेती है। शुरुआत में यह सोमवार की थकान जैसा लग सकता है, पर धीरे‑धीरे थकान हफ़्तों‑महीनों तक पीछा नहीं छोड़ती; काम से विरक्ति, चिड़चिड़ापन, और ‘कुछ भी मायने नहीं रखता’ भाव का प्रसार होता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे व्यावसायिक संदर्भ से जोड़कर परिभाषित किया है, पर परिवार‑संभाल, शिक्षा, या सामाजिक दायित्व भी समान प्रभाव डाल सकते हैं। भारतीय परिवेश में “सब . बर्नआउट वह अवस्था है जब लगातार काम, जिम्मेदारी और ‘हमेशा उपलब्ध’ रहने की माँग शरीर‑मन की ऊर्जा को चूस लेती है। शुरुआत में यह सोमवार की थकान जैसा लग सकता है, पर धीरे‑धीरे थकान हफ़्तों‑महीनों तक पीछा नहीं छोड़ती; काम से विरक्ति, चिड़चिड़ापन, और ‘कुछ भी मायने नहीं रखता’ भाव का प्रसार होता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे व्यावसायिक संदर्भ से जोड़कर परिभाषित किया है, पर परिवार‑संभाल, शिक्षा, या सामाजिक दायित्व भी समान प्रभाव डाल सकते हैं। भारतीय परिवेश में “सब .