
किशोर हिंसा (Teen Violence) उस व्यवहार को दर्शाती है जिसमें 12 से 18 वर्ष के नौजवान जानबूझकर शारीरिक चोट पहुँचाते हैं या हिंसक कृत्यों में लिप्त होते हैं। इसमें स्कूल में बदमाशी (bullying), लड़ाई-झगड़े, गिरोहबाज़ी और हथियारों का उपयोग शामिल हो सकता है। किशोर हिंसा के पीछे व्यक्तिगत, पारिवारिक, सहपाठी और सामुदायिक कारकों का जटिल मेल होता है।
व्यक्तिगत जोखिम कारकों में अतीत में अपमान या उपेक्षा का अनुभव, आवेगशीलता (impulsivity), आत्म-सम्मान की कमी और नशे का सेवन शामिल है। मानसिक स्वास्थ्य समस्याएँ जैसे अवसाद, चिंता विकार या आघात के बाद तनाव विकार किशोरों को हिंसक व्यवहार के प्रति संवेदनशील बनाती हैं।
परिवारिक माहौल बेहद महत्वपूर्ण है। माता-पिता की अनदेखी, टूटे संबंध, अनुशासन की कमी और पारिवारिक कलह किशोरों में असुरक्षा की भावना पैदा कर सकती है। सकारात्मक पारिवारिक समर्थन, स्पष्ट नियमों और प्रेमपूर्ण संवाद बचपन से किशोर को आत्मविश्वास और सहानुभूति सिखाता है।
पड़ोस और स्कूल का माहौल भी असर डालता है। जब हिंसा सामान्य समझी जाती है या प्रतिस्पर्धात्मक टकराव गहराता है, किशोर अधिक आक्रामक हो जाते हैं। दूसरी ओर, स्कूल-आधारित परामर्श कार्यक्रम और सहपाठी सहायता समूह, किशोरों को संवेदनशील मुद्दों पर चर्चा और भावनात्मक समर्थन प्रदान करते हैं।
सामुदायिक कारक जैसे गरीबी, बेरोजगारी, सीमित अवसर और अवैध गिरोह गतिविधियाँ किशोरों को हिंसक रास्ते पर ले जा सकती हैं। सामुदायिक केंद्र, खेल और सांस्कृतिक कार्यक्रम किशोरों को सकारात्मक गतिविधियों में संलग्न करते हैं, जो हिंसा की संभावना को घटाते हैं।
किशोर हिंसा के प्रभाव में शामिल हैं शारीरिक चोट, मनोवैज्ञानिक आघात, शैक्षणिक गिरावट और सामाजिक अलगाव। गौरतलब है कि हिंसा के चक्र को तोड़ने में देर होने पर किशोरों में भविष्य में अपराध प्रवृत्ति और आत्म-ग्लानि जैसे मानसिक संकट बढ़ जाते हैं।
रोकथाम और हस्तक्षेप बहुआयामी होने चाहिए: व्यक्तिगत थैरेपी, परिवार चिकित्सा, स्कूल-आधारित कार्यक्रम और सामुदायिक समर्थन को एक साथ लाना आवश्यक है। संज्ञानात्मक-व्यवहार थैरेपी किशोरों को आक्रामक विचारों को पहचानकर उन्हें नियंत्रित करना सिखाती है, जबकि मनोरंजन गतिविधियाँ सकारात्मक ऊर्जा मुहैया कराती हैं।
अभिभावकों, शिक्षकों और समाज कार्यकर्ताओं को चेतावनी संकेत पहचानने चाहिए, जैसे अचानक व्यवहार में बदलाव, अलगाव, गिरते अंक या फिजिकल चोटों का बहाना। समर्थन और मार्गदर्शन के लिए, उन्हें सामुदायिक हेल्पलाइन्स और मनोविज्ञानिक सेवाओं से संपर्क करना चाहिए।
नवोदय और सशक्तिकरण कार्यक्रम, जैसे सम्मान और नेतृत्व कार्यशालाएँ, किशोरों को उनकी क्षमताएं पहचानने और सकारात्मक पहचान बनाने में मदद करते हैं। सतत निगरानी, डाटा-संचालित रणनीतियाँ और व्यापक नीतियां किशोर हिंसा को दीर्घकालिक रूप से कम कर सकती हैं।