
स्व-सम्मान (Self Esteem) वह धारणा है जो व्यक्ति को अपनी स्वयं की मूल्यवानता, क्षमताओं और योग्यता के प्रति होती है। उच्च स्व-सम्मान वाले व्यक्ति अपने गुणों और कमियों को संतुलित दृष्टिकोण से देखते हैं, जिससे वे आत्मविश्वास के साथ चुनौतियों का सामना कर पाते हैं और असफलताओं से सीखते हैं।
कम स्व-सम्मान में ‘मैं नाकाम हूँ’, ‘मुझे कोई पसंद नहीं करता’ जैसी नकारात्मक आत्म-गप्प शामिल होते हैं, जो चिंता, अवसाद और सामाजिक अलगाव को बढ़ावा दे सकते हैं। इस स्थिति में व्यक्ति आलोचनाओं से अधिक प्रभावित होता है और सकारात्मक फीडबैक को भी अमान्य कर सकता है।
स्व-सम्मान पर प्रभाव डालने वाले कारकों में पारिवारिक वातावरण, बचपन के अनुभव, सामाजिक तुलना और मीडिया का प्रभाव शामिल होते हैं। सकारात्मक संबंध और संरचनात्मक समर्थन, जैसे प्रेरणादायक माता-पिता या शिक्षक, व्यक्ति के आत्म-मूल्यांकन को मजबूत करते हैं।
संज्ञानात्मक व्यवहार थैरेपी (CBT) स्व-सम्मान बढ़ाने के लिए प्रभावी होती है। इसमें नकारात्मक सोच को पहचानकर उसे वास्तविकता के अनुरूप बदलने की प्रक्रिया शामिल होती है। इस प्रक्रम में खुद के प्रति दया और समझदारी विकसित होती है।
दैनिक अभ्यासों में आभार पत्रिका लिखना, अपने उपलब्धियों को नोट करना और खुद को सकारात्मक पुष्टि देना शामिल है। ये तकनीकें नकारात्मक सोच के चक्र को तोड़ने में मदद करती हैं और मानसिक मजबूती प्रदान करती हैं।
लक्ष्य निर्धारण, छोटे-छोटे और प्राप्त करने योग्य लक्ष्यों को चुनना, और उन्हें पूरा करने पर आत्म-प्रशंसा करना स्व-सम्मान को बढ़ाता है। SMART (विशिष्ट, मापनीय, प्राप्त करने योग्य, यथार्थवादी, समयबद्ध) लक्ष्य बनाएँ और प्रगति ट्रैक करें।
सामाजिक समर्थन—दोस्त, परिवार, या मेंटर—स्व-सम्मान के पोषण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। साझा अनुभव और प्रोत्साहन व्यक्ति को अपनी क्षमता पर भरोसा दिलाते हैं और सकारात्मक आत्म-धारणा बनाते हैं।
शारीरिक गतिविधियाँ जैसे व्यायाम, योग, और गहरी साँस व्यायाम, तनाव कम करते हैं और मस्तिष्क में मूड-बूस्टिंग न्यूरोट्रांसमीटर (सेरोटोनिन, डोपामिन) के स्तर को बढ़ाते हैं, जिससे आत्म-विश्वास में वृद्धि होती है।
माइंडफुलनेस और ध्यान अभ्यास, वर्तमान में केंद्रित रहने में मदद करते हैं और आत्म-निर्णय क्षमता को मजबूत बनाते हैं। आत्म-जागरूकता बढ़ाने से नकारात्मक आत्म-चर्चा कम होती है और व्यक्ति स्वयं को क्षमाशील दृष्टि से देखने लगता है।
निरंतर प्रयास, धैर्य और सहानुभूति से स्व-सम्मान को मजबूती मिलती है। जब व्यक्ति अपने आत्म-मूल्य को पहचानता है, तो वह संतुष्टि, उत्पादकता और खुशहाल जीवन की ओर बढ़ता है।