
प्रसवोत्तर अवधि (Postpartum Period) उस महत्वपूर्ण चरण को दर्शाती है जो बच्चे के जन्म के बाद आरंभ होती है और आमतौर पर छह से बारह सप्ताह तक चलती है। इस दौरान मां के शरीर में बड़े पैमाने पर शारीरिक परिवर्तन होते हैं, जैसे गर्भाशय का सिकुड़ना, हार्मोन के स्तर में परिवर्तन और प्रसव के दौरान हुए घावों का ठीक होना। साथ ही, नई मां को भावनात्मक रूप से भी कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है—बेबी के साथ बांड बनाना, स्तनपान लगाना और दिनचर्या को व्यवस्थित करना आदि।
शारीरिक दृष्टि से प्रसवोत्तर देखभाल में महत्वपूर्ण है—भरपूर आराम, पौष्टिक आहार और पर्याप्त जलयोजन। रक्तस्राव (lochia) धीरे-धीरे कम होना चाहिए और स्तन दर्द से राहत के लिए ठंडी या गर्म सेक का सहारा लिया जा सकता है। सोने की कमी से होने वाले तनाव को कम करने के लिए परिवार के अन्य सदस्यों से सहायता लेने में संकोच नहीं करना चाहिए।
हॉर्मोनल असंतुलन, नींद की कमी और नई जिम्मेदारियाँ अक्सर “baby blues” का कारण बनती हैं, जिससे मां थोड़ी उदास, चिड़चिड़ी या भावुक महसूस कर सकती है। ये लक्षण सामान्यतया दो सप्ताह में ठीक हो जाते हैं, लेकिन अगर यह छह सप्ताह से अधिक समय तक बना रहे और गर्व गर्भवती महसूस कराने लगे, तो पोस्टपार्टम डिप्रेशन (PPD) का संदेह करना चाहिए। प्रमुख संकेतों में आनंदहीनता, निरंतर उदासी, नींद विकृतियाँ और खुद पर या बच्चे पर ध्यान न दे पाने की स्थिति शामिल हैं।
पिता या साथी का समर्थन इस दौरान अत्यंत आवश्यक है। वे गृहकार्य, घरेलू व्यवस्था और बच्चे के देखभाल के कुछ हिस्सों को संभालकर मां को आराम दे सकते हैं। एक-दूसरे की भावनाओं को समझना और खुलकर बातचीत करना संबंधों को मजबूत बनाता है और मानसिक तनाव को कम करता है।
प्रोफेशनल सहायता शामिल हो सकती है—लैक्टेशन कंसल्टेंट स्तनपान संबंधी समस्याओं में मार्गदर्शन करता है, चिकित्सक शारीरिक स्थिति की जांच करता है, और मनोवैज्ञानिक या मनोचिकित्सक भावनात्मक सहायता प्रदान करते हैं। संज्ञानात्मक व्यवहार थेरेपी (CBT) और इंटरपर्सनल थेरेपी (IPT) पोस्टपार्टम चुनौतियों से निपटने में प्रभावी मानी जाती हैं।
संगठित दिनचर्या डिजिटल हेल्थ एप या कैलेंडर के माध्यम से बनाई जा सकती है, जिसमें स्तनपान, नींद और स्वयं की देखभाल के लिए समय निर्धारित होता है। स्व-सहायत समूह, जहां नई मांएक साथ मिलकर अपने अनुभव साझा करती हैं, अवसाद और चिंता को कम करने में मददगार हो सकते हैं।
स्वयं की देखभाल में योग, ध्यान और गहरी साँस तकनीक शामिल हैं। ये गतिविधियाँ तनाव हार्मोन कॉर्टिसोल को नियंत्रित करती हैं और मस्तिष्क में सेरोटोनिन और डोपामिन जैसे मूड-बूस्टिंग न्यूरोट्रांसमीटर का स्तर बढ़ाती हैं।
जब मां काम पर लौटने का विचार करे, तो धैर्यपूर्वक और चरणबद्ध रूप से इस परिवर्तन की योजना बनाना चाहिए। कार्यस्थल पर लचीली नीतियाँ, जैसे आंशिक अवकाश या वर्क-फ्रॉम-होम विकल्प, ट्रांजिशन को सहज बनाते हैं।
अंततः, प्रसवोत्तर अवधि एक आत्म-देखभाल और सहारा मांगने का समय है। शारीरिक, भावनात्मक और सामाजिक समर्थन की उपयुक्त व्यवस्था से नई मां और परिवार इस चुनौतीपूर्ण समय को सफलतापूर्वक पार कर सकते हैं।