अल्जाइमर रोग

अल्जाइमर रोग

अल्झाइमर रोग वृद्धावस्था में पाई जाने वाली डिमेन्शिया का सबसे आम प्रकार है, किंतु इसके सूक्ष्म जैव‑रासायनिक परिवर्तन 20‑25 वर्ष पूर्व ही आरम्भ हो सकते हैं। इसमें मस्तिष्क में β‑एमाइलॉयड तख्ते और न्यूरॉन के भीतर टैउ प्रोटीन के गुच्छे जमा होते हैं, जिसके परिणामस्वरूप सिनेप्टिक संचार बाधित होता है और न्यूरॉनों की क्रमिक मृत्यु होती जाती है। 65 वर्ष के बाद प्रत्येक पाँच में से एक व्यक्ति को और 85 वर्ष के बाद लगभग हर दूसरे व्यक्ति को अल्झाइमर होने की संभावन...

प्रारम्भिक चरण में अल्पकालिक स्मृति‑घाट, महत्वपूर्ण तिथियाँ भूल जाना और बार‑बार वही बात पूछना दिखाई देता है। धीरे‑धीरे रोगी रास्ता भूलने, शब्द खोजने में कठिनाई और संख्यात्मक कार्य (बिल भरना, दवा मात्रा मापना) करने में असमर्थ होने लगता है। मध्य चरण में व्यक्तित्व परिवर्तन, चिड़चिड़ापन, भ्रम और निद्रा‑चक्र अव्यवस्था बढ़ जाती है। अंतिम चरण में चलना‑फिरना, भोजन निगलना और स्वच्छता तक के कार्य दूसरों पर निर्भर हो जाते हैं।

निदान के लिए चिकित्सक विस्तृत इतिहास, न्यूरो‑साइकोलॉजी आकलन, MRI/CT स्कैन तथा कुछ केंद्रों में CSF बायोमार्कर या PET स्कैन का सहारा लेते हैं। डोनेपेज़िल या रिवास्टिग्मीन जैसी कोलिनएस्टराज़ इन्हिबिटर औषधियाँ एसिटाइलकोलाइन उपलब्धता बढ़ाकर संज्ञान‑क्षमताओं को कुछ समय स्थिर रख सकती हैं। मेमान्टीन, ग्लुटामेट सिग्नलिंग को नियंत्रित कर उत्तेजना एवं व्यवहार समस्याओं में सहायता करता है।

औषधीय उपचार के साथ‑साथ गैर‑औषधीय हस्तक्षेप अनिवार्य हैं—यथार्थ‑ओरिएंटेशन थैरेपी, स्मृति‑पुनरुत्थान (Reminiscence), संगीत एवं कला‑गतिविधियाँ रोगी को संलग्न रखती हैं और सकारात्मक भाव जगाती हैं। घर में स्पष्ट संकेतक, सुरक्षित फर्नीचर व्यवस्था और पर्याप्त प्रकाश रोगी की स्वायत्तता बढ़ाते हैं। नियमित हल्का व्यायाम, भूमध्यसागरीय‑शैली आहार (मछली, जैतून तेल, साबुत अनाज), पर्याप्त नींद और सामाजिक मेलजोल मस्तिष्क में न्यूरोट्रॉफिन स्तर बढ़ाकर रोग की प्रगति धीमी कर ...

परिवार‑सदस्य जो चौबीसों घंटे देखभाल करते हैं, अक्सर “केयर‑गिवर बर्न‑आउट” से जूझते हैं—थकान, अवसाद, पीठ‑दर्द। उन्हें सहारा देने के लिए ‘रिस्पाइट केयर’, समर्थन‑समूह और ऑनलाइन शिक्षा मॉड्यूल उपलब्ध हैं। खुला संवाद, जिम्मेदारी बाँटना और सेल्फ‑केयर की ठोस रणनीतियाँ रिश्तों को तनाव‑मुक्त रखती हैं।

वैज्ञानिक अनुसंधान में अब एंटी‑एमाइलॉयड मोनोक्लोनल एंटीबॉडी, टैउ‑विरोधी टीके तथा रक्त परीक्षण आधारित अर्ली‑स्क्रीनिंग विकसित हो रहे हैं। हालाँकि पूर्ण उपचार फिलहाल दूर है, लेकिन इन उभरते विकल्पों से रोग‑प्रबंधन के परिदृश्य में आशा का संचार हो रहा है। अभी के लिए लक्ष्य है—रोगी की गरिमा बनाए रखना, भावनाओं को मान्यता देना और हरेक स्मृति‑क्षण को स्नेहपूर्वक संजोना।

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