
मोटापा (Obesity) एक ऐसी पुरानी स्थिति है जिसमें शरीर में अत्यधिक वसा संचय हो जाता है, जिससे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। मोटापे के प्रमुख कारणों में आनुवंशिक प्रवृत्ति, हार्मोनल असंतुलन, धीमा चयापचय, अव्यवस्थित खान-पान और शारीरिक गतिविधि की कमी शामिल हैं। हालांकि, मनोवैज्ञानिक कारक—जैसे तनाव, अवसाद, और आत्म-सम्मान की कमी—भी मोटापे की उत्पत्ति एवं जटिलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
अप्रभावी तनाव प्रबंधन और भावनात्मक अस्थिरता अक्सर भावनात्मक भोजन (Emotional Eating) की ओर ले जाती हैं। व्यक्ति गुस्सा, चिंता या उदासी जैसी भावनाओं से निपटने के लिए अधिक कैलोरी वाले खाद्य पदार्थों का सेवन कर सकता है, जिससे वजन तेजी से बढ़ता है और फिर आत्मग्लानि की भावनाएँ उत्पन्न होती हैं। यह एक विषम चक्र बन जाता है जिसे तोड़ना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
मोटापे के प्रबंधन के लिए एक समग्र दृष्टिकोण आवश्यक है, जिसमें पौष्टिक खान-पान, नियमित व्यायाम, और मनोवैज्ञानिक हस्तक्षेप शामिल हों। पोषण विशेषज्ञ एवं फिटनेस प्रशिक्षक द्वारा तैयार किए गए जीवनशैली योजना में फल, सब्जियाँ, साबुत अनाज और प्रोटीन समावेश हो, और परिष्कृत चीनी व उच्च वसा वाले खाद्य पदार्थों का सेवन सीमित हो।
मनोवैज्ञानिक परामर्श, विशेष रूप से संज्ञानात्मक व्यवहार थैरेपी (CBT), व्यक्ति को अपने खान-पान और सोच पैटर्न को समझने में मदद करता है। इसमें स्व-मॉनिटरिंग, चिन्ह और स्थितियों से बचने तथा वैकल्पिक व्यवहार अपनाने जैसी रणनीतियाँ शामिल होती हैं। इसके अलावा, माइंडफुल ईटिंग (Mindful Eating) तकनीकें, भोजन के प्रति जागरूकता बढ़ाकर अतिव्यापार को कम करती हैं।
लक्ष्य निर्धारित करने और प्रेरणा बनाए रखने के लिए मोटिवेशनल इंटरव्यू (MI) का उपयोग किया जाता है। इस प्रक्रिया के तहत व्यक्ति अपनी मूल प्रेरणाओं को पहचानकर दीर्घकालिक बदलावों को आत्मसात करता है। साथी, परिवार और समर्थन समूहों का सहयोग स्थिरता बनाए रखने में सहायक होता है।
शारीरिक गतिविधियाँ—जैसे तेज चलना, साइकिल चलाना, योग और शक्ति प्रशिक्षण—मेटाबॉलिज्म को बढ़ाते हैं और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार लाते हैं। व्यायाम से सेरोटोनिन और एण्डोर्फिन का स्तर बढ़ता है, जो मूड में सुधार करके तनाव को कम करता है।
गंभीर मामलों में दवाइयां (जैसे ऑरल एपेटाइट सप्रेसेंट्स) या ब्योप्स या बैरिएट्रिक सर्जरी विकल्प हो सकते हैं। परंतु इन परामर्शों और सर्जरी के बाद भी मनोवैज्ञानिक समर्थन एवं जीवनशैली पर ध्यान आवश्यक है ताकि वज़न स्थायी रूप से नियंत्रित रहे और स्वास्थ्य लाभ लंबे समय तक टिके रहें।
समुदाय-आधारित हस्तक्षेप, जैसे वॉकिंग क्लब, स्वास्थ्य कार्यशालाएँ और डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म्स, मोटापे से जूझ रहे लोगों को आपस में जोड़कर सामाजिक समर्थन प्रदान करते हैं। इससे प्रेरणा मिलती है, अनुभव साझा होते हैं और आपसी जिम्मेदारी से परिणाम बेहतर होते हैं।
निष्कर्षतः, मोटापे को केवल शारीरिक समस्या नहीं, बल्कि एक बहुआयामी स्वास्थ्य चुनौती के रूप में देखना चाहिए। वैज्ञानिक दृष्टिकोण, व्यवहारिक परिवर्तन और सामाजिक समर्थन को जोड़कर दीर्घकालिक सफलता प्राप्त की जा सकती है।