
मूड डिसऑर्डर (Mood Disorders) उन मानसिक स्वास्थ्य विकारों का समूह हैं जो व्यक्ति की भावनात्मक अवस्था और मूड को प्रभावित करते हैं। प्रमुख मूड डिसऑर्डर में मेज़र डिस्प्रेशन (Major Depressive Disorder), बाइपोलर डिसऑर्डर (Bipolar Disorder) और पर्सिस्टेंट डिस्प्रेसिव डिसऑर्डर (Persistent Depressive Disorder) शामिल हैं।
मेज़र डिस्प्रेशन, अक्सर केवल डिप्रेशन कहा जाता है, कम से कम दो सप्ताह तक निरंतर उदासी, निराशा, आत्म-मूल्य में गिरावट, ऊर्जा की कमी, अनियमित नींद और भूख जैसे लक्षणों से पहचाना जाता है। यह व्यक्ति के दैनिक कार्यों, सामाजिक संपर्क और पेशेवर जीवन में गहरी बाधा डालता है और गंभीर मामलों में आत्महत्या की प्रवृत्तियों का कारण बन सकता है।
बाइपोलर डिसऑर्डर में मूड और ऊर्जा स्तर में चरमवृत्तियाँ होती हैं। मैनिक या हाइपोमैनिक एपिसोड्स में उच्च उत्साह, मासूमियत, कम नींद की आवश्यकता और आवेगी निर्णय शामिल हैं, जबकि डिप्रेसिव एपिसोड्स में मेज़र डिस्प्रेशन से मिलते-जुलते लक्षण होते हैं। इस विकार का प्रबंधन जटिल होता है और इसमे मूड स्टेबलाइजर्स (लिथियम, वातानुकूलित दवाएँ) की आवश्यकता पड़ती है।
पर्सिस्टेंट डिस्प्रेसिव डिसऑर्डर, जिसे डिस्टिमिया भी कहते हैं, कम तीव्र लेकिन दो वर्षों से अधिक समय तक बना रहने वाला लगातार उदास मनोभाव है। यह क्रोनिक लो-मूड की स्थिति व्यक्ति की जीवनशैली और आत्मछवि पर दीर्घकालिक प्रभाव डालती है।
अन्य मूड डिसऑर्डर में साइकोटिक डिप्रेशन, सीज़्नल एफेक्टिव डिसऑर्डर (सर्दियों में डिप्रेशन के लक्षण), और प्रीमेंस्ट्रुअल डिस्फोरिक डिसऑर्डर (मासिक धर्म चक्र से जुड़े गंभीर मूड स्विंग्स) शामिल हैं।
कारणों में जेनेटिक प्रवृत्ति, न्यूरोट्रांसमीटर असंतुलन (सेरोटोनिन, नॉरपेनेफ्रिन), हार्मोनल परिवर्तन और पर्यावरणीय तनाव घटक महत्वपूर्ण हैं। चिकित्सा और मनोवैज्ञानिक कारकों के बीच जटिल संबंध इस विकार की गंभीरता तय करता है।
उपचार की रणनीति में एंटीडिप्रेसेंट्स (SSRI, SNRI), मूड स्टेबलाइजर्स और कभी-कभी एंटीसाइकॉटिक्स शामिल हैं। साइकोथेरेपी, विशेषकर कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरेपी (CBT), अंतर-व्यक्तिगत थेरेपी (IPT) और मैनेजमेंट सत्र, लक्षणों को समझने और व्यवहारिक बदलाव लाने में मदद करते हैं।
जीवनशैली परिवर्तनों का योगदान भी महत्वपूर्ण है। नियमित व्यायाम, संतुलित आहार, पर्याप्त नींद, सोशल सपोर्ट ग्रुप्स और माइंडफुलनेस मेडिटेशन लक्षणों में कमी ला सकते हैं। स्वयं सहायता समूह और ऑनलाइन कम्युनिटी, अनुभव साझा करने और अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्नों के उत्तर देने में सहायक होती है।
प्रारंभिक पहचान एवं हस्तक्षेप (Early Intervention) और लक्षणों की निरंतर निगरानी, उपचार की सफलता एवं पुनरावृत्ति रोकथाम में निर्णायक भूमिका निभाती है। एक समग्र दृष्टिकोण जिसमें चिकित्सा, मनोवैज्ञानिक और सामाजिक समर्थन शामिल हो, मरीज को दीर्घकालिक स्थिरता और बेहतर जीवन गुणवत्ता प्रदान करता है।