होर्डिंग

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भंडारण विकार (Hoarding Disorder) एक गंभीर मानसिक स्वास्थ्य स्थिति है जिसमें व्यक्ति उन वस्तुओं को भी जमा करता है जिनकी वास्तविक में उसे आवश्यकता नहीं होती या जिनका मूल्य बहुत कम होता है। ये वस्तुएं रोजमर्रा की वस्तुओं जैसे कपड़े, अखबार और टैक्स्टाइल से लेकर अजीबोगरीब चीज़ों जैसे समाप्त होने वाली खाध्य वस्तुएँ, टूटी-फूटी इलेक्ट्रॉनिक वस्तुएँ या अपशिष्ट सामग्री तक हो सकती हैं। व्यक्ति को इन वस्तुओं से भावनात्मक जुड़ाव होता है, जिससे उन्हें छोड़ना अत्यंत कठिन हो जाता है।

भंडारण विकार के परिणामस्वरूप घर में कपड़े, कागज और अन्य सामान जमा होने से जो मार्ग पार करने के लिए बचे रहते हैं वे भी बाधित हो जाते हैं और जीवनक्षेत्र असुरक्षित हो सकता है। स्वच्छता ख़राब हो सकती है, कीटों का प्रकोप हो सकता है और अग्नि सुरक्षा जोखिम बढ़ सकता है। ये स्थिति व्यक्ति को सामाजिक अलगाव की ओर धकेल देती है, क्योंकि मित्र और परिवार के लोग घर आने से कतराते हैं, जिससे भावनात्मक समर्थन में कमी आती है।

इस विकार के पीछे कई कारक काम करते हैं: आनुवंशिक प्रवृत्ति, बचपन में ईंधन किल्लत या आघात का इतिहास, चिंता विकार या अवसाद जैसी अवस्थाएँ। व्यक्ति अक्सर संग्रहण को अपनी सुरक्षा के रूप में देखता है, क्योंकि वस्तुएँ खोने का खतरा भय पैदा करता है।

चिकित्सा दृष्टिकोण में संज्ञानात्मक व्यवहार थेरेपी (CBT) का उपयोग किया जाता है, विशेषकर ‘एक्सपोज़र एंड रिस्पॉन्स प्रिवेंशन’ तकनीक, जो व्यक्ति को धीरे-धीरे अपने घेरे से बाहर निकलकर वस्तुओं को छोड़ने की प्रैक्टिस कराती है। थेरेपिस्ट भावनाओं की पहचान, मूल्य निर्धारण और निर्णय लेने की तकनीकें सिखाता है।

घरेलू व्यवस्था में सुधार के लिए, थेरेपिस्ट के मार्गदर्शन में क्षेत्रों का चयन कर के आंगन में रखी वस्तुओं को क्रमबद्ध और मूल्यांकन किया जाता है। प्रत्येक आइटम का योग्यता मूल्यांकन करने के बाद, व्यक्ति को छुटकारा पाने के लिए छोटे-छोटे कदम उठाने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है। यह प्रक्रिया धीरे-धीरे आत्मविश्वास बढ़ाती है और व्यक्ति को योग्य वस्त्रों को छोड़ने के लिए प्रेरित करती है।

पारिवारिक सहयोग और समर्थन समूह (Self-Help Groups) भी महत्वपूर्ण योगदान देते हैं, जहाँ प्रतिभागी अनुभव साझा करते हैं और एक-दूसरे को जवाबदेही प्रदान करते हैं। यह व्यक्ति को अकेलेपन से बाहर निकालता है और व्यावहारिक सुझाव देने में मदद करता है।

कुछ मामलों में, यदि OCD, चिंता विकार या अवसाद जैसे सह-उपस्थिति वाले अन्य विकार भी हों, तो SSRI जैसे एंटीडिप्रेसेंट्स का उपयोग किया जा सकता है। दवाएँ चिकित्सकीय निगरानी में लेनी चाहिए ताकि प्रतिक्रिया और निगरानी को सुनिश्चित किया जा सके।

दिनचर्या में व्यवस्थित योजनाएँ बनाना जैसे ‘प्रत्येक दिन तीन आइटम का मूल्यांकन करें’ या ‘एक अलमारी साफ करें’ से भी मदद मिलती है। तनाव प्रबंधन के लिए ध्यान और गहरी साँस लेने के अभ्यास सहायक होते हैं। नई हॉबीज़ या रचनात्मक गतिविधियाँ व्यक्ति को सकारात्मक व्यस्तता प्रदान करती हैं और संग्रहण की प्रवृत्ति को कम करती हैं।

दीर्घकालिक सुधार के लिए, नियमित फॉलो-अप सेशन्स और होम विज़िट जैसे उपाय बनाए रखना आवश्यक है। ये कदम व्यक्ति के प्रगति को ट्रैक करते हैं और आवश्यकतानुसार रणनीति समायोजित करते हैं। एक बहु-विषयक टीम – जिसमें मनोवैज्ञानिक, व्यावसायिक चिकित्सक और सामाजिक कार्यकर्ता शामिल हों – व्यक्ति की मानसिक स्वास्थ्य और पर्यावरण दोनों में सुधार लाने में सहायक होता है।

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