
भावात्मक विकार उन मानसिक स्वास्थ्य स्थितियों को कहते हैं जो व्यक्ति की भावनात्मक स्थिरता और दैनिक कार्यक्षमता को प्रभावित करती हैं। इनमें अवसाद (Depression), चिंता विकार (Anxiety Disorders), द्विध्रुवीय विकार (Bipolar Disorder) और व्यक्तित्व विकार (Personality Disorders) शामिल हैं। इन विकारों के कारण व्यक्ति में निरंतर उदासी, चिड़चिड़ापन और आत्मसम्मान में कमी जैसी समस्यानुप्रविष्ट होती हैं।
भावात्मक विकारों के लक्षण मानसिक तथा शारीरिक दोनों हो सकते हैं। मानसिक लक्षणों में निरंतर थकान, निर्णय लेने में कठिनाई और एकाग्रता में कमी होती है। शारीरिक लक्षणों में निद्रा में समस्या, भूख में बदलाव और शरीर में अवांछित वजन उतार-चढ़ाव शामिल हैं। गंभीर मामलों में आत्महत्या विचार और आत्म-हानि की प्रवृत्ति भी विकसित हो सकती है।
इन विकारों के उत्पत्ति में आनुवंशिक प्रवृत्ति, मस्तिष्क रसायनों में असंतुलन और कठिन जीवन अनुभव जैसे कई कारक शामिल हैं। न्यूरोविज्ञानी बताते हैं कि सेरोटोनिन, डोपामाइन और नॉरेपिनेफ्रीन जैसे न्यूरोट्रांसमीटर में असंतुलन भावनात्मक विकारों का मुख्य कारण हो सकता है।
निदान प्रक्रिया में मनोचिकित्सक या मनोवैज्ञानिक द्वारा विस्तृत साक्षात्कार, नैदानिक परीक्षण और DSM या ICD मानदंडों के अनुसार मूल्यांकन शामिल होता है। सटीक निदान उपचार की सफलता के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
उपचार में आमतौर पर मनोचिकित्सा और औषधीय सहायक उपचार दोनों शामिल होते हैं। संज्ञानात्मक व्यवहार थेरेपी (CBT) व्यक्ति के नकारात्मक सोच पैटर्न को पहचानकर बदलने में मदद करती है, जबकि डायलेक्टिकल बिहेवियर थैरेपी (DBT) व्यक्ति को भावनात्मक नियंत्रण और सहनशीलता के कौशल सिखाती है। आवश्यकतानुसार एंटीडिप्रेसेंट्स, मूड स्टेबलाइजर्स या एंटीसाइकोटिक्स का उपयोग भी किया जाता है।
परिवार और मित्रों का सहयोग पुनर्वास प्रक्रिया को सशक्त बनाता है। परिवार चिकित्सा, समर्थनात्मक संवाद और भूमिकाओं के स्पष्ट निर्धारण में मदद करता है। ग्रुप थैरेपी, समान अनुभव साझा करने वाले व्यक्तियों को मिलकर भावनात्मक समर्थन और तनाव राहत प्रदान करती है।
स्व-सहायता उपायों में नियमित व्यायाम, पर्याप्त नींद, संतुलित आहार और ध्यान जैसे तकनीकें शामिल हैं। तनाव प्रबंधन के लिए योग, मेडिटेशन और सांस अभ्यास व्यक्ति को भावनात्मक उतार-चढ़ाव से निपटने में सहायता करते हैं।
लंबी अवधि के लिए निगरानी आवश्यक होती है। नियमित चिकित्सकीय जांच, मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन और उपचार योजना की समीक्षा से उपचार समायोजन आसान होता है। संकट में त्वरित प्रतिक्रिया के लिए हेल्पलाइन सेवाएँ और डिजिटल सपोर्ट प्लेटफ़ॉर्म जीवन रक्षक साबित होते हैं।
रोकथाम के उपायों में विद्यालयों, कार्यस्थलों और समुदायों में मानसिक स्वास्थ्य शिक्षा, जागरूकता अभियान और शुरुआती पहचान कार्यक्रम शामिल हैं। यह कदम सामाजिक कलंक कम करने और लोगों में सहायता माँगने की हिम्मत बढ़ाने में सहायक होते हैं।