क्रोनिक रिलेप्स

क्रोनिक रिलेप्स

क्रॉनिक रीलैप्स तब होती है जब व्यक्ति कई प्रयासों के बाद भी लगातार उसी हानिकारक व्यवहार या आदत में वापस चला जाता है। यह खासकर नशा, अवसाद या चिंता के मामले में देखने को मिलता है। रीलैप्स की प्रक्रिया में व्यक्ति की इच्छाशक्ति और पुरानी आदतों की ताकत के बीच जारी संघर्ष होता है; नए सकारात्मक निर्णय पर पहुँचने का संकल्प एक पल में घटकर पहले वाली स्थिति में लौट सकता है।

तंत्रिका विज्ञान के अनुसार, रीलैप्स के दौरान मस्तिष्क में पुरस्कार प्रणाली अत्यधिक सक्रिय हो जाती है, जिससे पुरानी आदतों के प्रति प्रेरणा बढ़ती है। इसी बीच प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स का नियंत्रण कमजोर हो जाता है, जिससे व्यक्ति भावनात्मक रूप से तर्क से हारा हुआ अनुभव करता है। उदाहरणतः शराब छोड़ने की कसम खाने वाला व्यक्ति स्ट्रेस में अचानक एक पेग का लालच महसूस कर सकता है, क्योंकि पुरानी स्मृतियाँ उस क्षेत्र में अधिक सक्रिय होती हैं।

रीलैप्स चक्र को तोड़ने के लिए आत्म-निरीक्षण महत्वपूर्ण है। व्यक्ति को अपने ट्रिगर्स—तनाव, असुरक्षा, अकेलापन या विशेष स्थलों—की पहचान करनी होती है। इसके पश्चात वैकल्पिक व्यवहार योजना बनाई जाती है जैसे गहरी साँस लेना, ध्यान केंद्रित गतिविधि करना या दोस्त से तुरंत बात करना। इन तकनीकों को दैनिक अभ्यास में शामिल करना रीलैप्स के प्रयासों में स्थिरता लाता है।

मनोवैज्ञानिक उपचारों में CBT, ACT और मॉटिवेशनल इंटरव्यूइंग विशेष प्रभावी हैं। CBT के तहत नकारात्मक स्वचालित विचारों की पहचान कर सकारात्मक विकल्पों की आदत डाली जाती है। ACT व्यक्ति को वर्तमान में स्वीकार्यता सिखाता है और मूल्य-आधारित कार्य करने की प्रेरणा देता है। Motivational Interviewing आत्म-प्रेरणा को आंतरिक रूप से मजबूत बनाता है, जिससे व्यक्ति के संकल्प की नींव गहरी होती है।

समूह समर्थन समूह और पुनर्वास केंद्र, जहाँ समान अनुभव वाले लोग एक-दूसरे से सीखते हैं, रीलैप्स भय को कम करते हैं। अरुचिकर घटनाओं पर चर्चा से महसूस होता है कि प्रयास विफल नहीं हुए, बल्कि सीखने का हिस्सा हैं। कई मामलों में, फार्माकोथेरेपी—जैसे क्रेविंग कम करने वाली दवाएँ—थोड़ी अवधि के लिए सहायक हो सकती हैं, लेकिन इसका मुख्य उद्देश्य मस्तिष्क के न्यूरोकैमिकल संतुलन में सुधार लाना होता है।

निष्कर्षतः, क्रॉनिक रीलैप्स एक चुनौतीपूर्ण लेकिन प्रबंधनीय प्रक्रिया है। व्यक्ति को हर गिरावट पर पुनः उठने का साहस दिखाना चाहिए, अनुभव से सीखना चाहिए और नई रणनीतियाँ अपनानी चाहिए। निरंतर अभ्यास, समर्थन नेटवर्क और वैधो के संयोजन से रीलैप्स का चक्र धीरे-धीरे कमजोर होता जाता है, जिससे व्यक्ति स्थायी बदलाव की दिशा में आगे बढ़ता है।

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