
क्रॉनिक आवेगशीलता एक मानसिक व्यवहारिक प्रतिमान है जिसमें व्यक्ति निरंतर बिना सोचे-समझे क्रियाएँ करता है और तात्कालिक संतुष्टि के लिए जोखिम भरे निर्णय लेने से नहीं चूकता। यह केवल कभी-कभी होने वाली प्रतिक्रिया नहीं, बल्कि दिन-प्रतिदिन की चुनौतियों—रिश्तों, काम, वित्तीय स्थिति और स्वास्थ्य—पर गहरा प्रभाव डालने वाली आदत बन जाती है। व्यक्ति अक्सर कार्य करने के पश्चात पछतावा महसूस करता है क्योंकि उसने परिणामों का पर्याप्त मूल्यांकन नहीं किया होता।
आवश्यक कारणों में आनुवांशिक संवेदनशीलता प्रमुख है; डोपामिन और सेरोटोनिन मार्गों में असंतुलन प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स और एमिग्डाला के बीच नियामक संवाद को प्रभावित करता है। साथ ही, बचपन में अनुभव किया गया अविश्वसनीय परिवेश, पारिवारिक अस्थिरता और दीर्घकालिक तनाव मस्तिष्क के स्व-नियमन तंत्र को कमजोर कर सकते हैं।
क्रॉनिक आवेगशीलता के परिणामस्वरूप व्यक्ति को अस्थिर संबंधों, वित्तीय कठिनाइयों और पेशेवर कामकाज में अनियमितता का सामना करना पड़ता है। आवेगशील खरीदारी, जोखिमपूर्ण वाहन चलाना या नशीले पदार्थों का सेवन जैसी गतिविधियाँ स्वास्थ्य और सामाजिक प्रतिष्ठा को खतरे में डालती हैं। कार्यस्थल पर अधूरा छोड़ दिए गए प्रोजेक्ट और अनुशासनहीनता से कैरियर पर स्थायी प्रभाव पड़ सकता है।
निदान के लिए विस्तृत चिकित्सीय साक्षात्कार आवश्यक है, जिसमें क्लाइंट के व्यवहार, भावात्मक स्थिति और जोखिम-प्रदर्शन का विश्लेषण किया जाता है। Barratt Impulsiveness Scale जैसे परीक्षण आवेगी प्रवृत्तियों का मात्रात्मक आकलन प्रदान करते हैं। मनोचिकित्सक या मनोवैज्ञानिक को ADHD, सीमा-पंरपरात्मक विकार या द्विध्रुवीय विकार जैसी सहवर्ती स्थितियों को भी जोड़कर देखना चाहिए।
उपचार मुख्यतः संज्ञानात्मक-व्यवहार थेरेपी (CBT), डाइलैक्टिकल बिहेवियरल थैरेपी (DBT) और एक्सेप्टेंस एंड कमिटमेंट थैरेपी (ACT) पर आधारित होता है। CBT में आवेगीय विचारों को पहचानकर वैकल्पिक उत्तरों का अभ्यास कराया जाता है, जबकि DBT स्ट्रेस कोर्टोलेंस और इमोशन रेगुलेशन तकनीकें सिखाती है। ACT व्यक्ति को मूल्य आधारित जीवन लक्ष्य तय करने और अवांछित भावनाओं के साथ जीने की शक्ति देती है।
कभी-कभी ADHD उपचार में प्रयुक्त स्टिम्युलेंट्स या SSRIs जैसे मूड स्टेबिलाइजर्स भी मददगार होते हैं, लेकिन दवा केवल सहायक ही मानी जाती है। स्वयं की प्रगति का ट्रैक रखने के लिए क्लाइंट को व्यवहार डायरी रखने, ट्रिगर मानचित्रण और माइंडफुलनेस प्रैक्टिस करने की सलाह दी जाती है। सामाजिक समर्थन समूह और लाइफ कोचिंग भी सुधार की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। लंबी अवधि में संयम, निरंतर अभ्यास और पेशेवर मार्गदर्शन के साथ, व्यक्ति आवेगशीलता पर नियंत्रण पा सकता है और संतुलित जीवन जी सकता है।