
बॉर्डरलाइन पर्सनैलिटी डिसऑर्डर (BPD) भावनाओं का रोलर‑कोस्टर है: एक पल अतिआसक्ति, अगले पल घोर क्रोध; ‘मैं अच्छा/बुरा’, ‘तुम देवता/राक्षस’ जैसी द्विआधारी धारणाएँ। मूल जड़ है– त्यागे जाने का तीव्र भय और स्वयं की पहचान का धुँधलापन। जब यह भय सक्रिय हो, व्यक्ति आवेग में खुद को चोट पहुँचा सकता है, अपार खर्च कर सकता है या अचानक रिश्ता तोड़ सकता है – बाद में ग्लानि और खालीपन लिये।
तंत्रिका विज्ञान बताता है कि amygdala ज़्यादा सक्रिय, पर ventromedial prefrontal cortex का ब्रेक कमजोर; परिणाम– भावनात्मक बाढ़. अनुवांशिक संवेदनशीलता (5‑HTTLPR, FKBP5 वेरिएंट) और बचपन का क्रूर अनुभव (उपेक्षा, दुराचार) संयोजित होकर अतिसतर्क ‘अटैचमेंट सिस्टम’ बनाते हैं. यह प्रणाली उपेक्षा की भनक पर ही हाई‑अलर्ट में चली जाती है.
निदान के लिए DSM‑5 नौ मानदंडों में से कम‑से‑कम पाँच – पहचान अस्थिर, आवेग, आत्महत्या‑या‑स्व‑हानि, भाव‑अस्थिरता, क्रोध, खालीपन, परित्याग भय, पैरानोइड या डिसोसिएशन. बाइपोलर या CPTSD से अंतर समझना जरूरी है। व्यापक मूल्यांकन में बचपन की जीवन‑कथा, रियल‑टाइम ट्रिगर, तथा सहवर्ती विकार (ADHD, सब्स्टेंस) शामिल होते हैं.
उपचार त्रिपथीय है. (1) डायलैक्टिकल बिहेवियर थैरेपी: माइंडफुलनेस, संकट‑सहिष्णुता, इमोशन रेगुलेशन, इंटरपर्सनल प्रभावशीलता. भारतीय अनुसंधान दर्शाता है कि 12‑महीना DBT प्रोटोकॉल आत्म‑हानि एपिसोड 60 % घटाता है. (2) स्कीमा‑थैरेपी: “मैं अस्वीकार्य हूँ” को ‘सखी’ स्वर से चुनौती देना; इमैजिनेशन रीस्क्रिप्टिंग व लिमिटेड री‑पैरेंटिंग तकनीक. (3) मेंटलाइज़ेशन‑आधारित थेरेपी: ‘दूसरे के मन का मानचित्र’ बनाना, जिससे विभाजन कम हो.
दवाएँ सहायक: एसएसआरआई अवसाद कम करे, लो‑डोज़ क्वेटियापीन अनिद्रा व असह्य भावदशा घटाए, लैमोत्रिजीन क्रोध लहरों को निचले स्तर पर रखे. पर मुख्य काम कौशल अभ्यास है. क्राइसिस‑प्लान: कॉल‑लिस्ट, रबर‑बैंड स्नैप, बर्फ‑क्यूब या 5‑4‑3‑2‑1 ग्राउंडिंग, ताकि उग्र urge क्षणभंगुर रहे.
परिवार‑शिक्षा अनिवार्य: ‘सप्लिटिंग’ समझें, निरंतरता रखें, पर ओवर‑रिैक्ट न करें. साथी को स्पष्ट सीमा व स्थिर सहानुभूति – “मैं मदद करना चाहता हूँ, पर गाली स्वीकार्य नहीं” – राहत देती है. सहायक समूह और ऑनलाइन फोरम “मैं अकेला नहीं” बोध देते हैं, पर ट्रिगरिंग विवरण नियंत्रित रखें.
कलंक तोड़ना ज़रूरी है: BPD कोई “ड्रामा रानी” टैग नहीं, बल्कि दुराचित तंत्रिका‑तंत्र का परिणाम. अनुसंधान बताता है कि सघन उपचार से 10 वर्ष में आधे से अधिक लोग निदान मानदंड से बाहर आ जाते हैं. अतः आशा वास्तविक है – अनुशासनिक कौशल, सहानुभूति‑परक संबंध और सुरक्षित संरचना से विंध्य जैसा उतार‑चढ़ाव भी समतल राह बन सकता है.