
बाइपोलर डिसऑर्डर – जिसे द्विध्रुवी मूड विकार कहा जाता है – ऐसा मानसिक स्वास्थ्य रूप है जिसमें मनोदशा, ऊर्जा और गतिविधि स्तर अत्यधिक ऊँच‑नीच का अनुभव करते हैं। ‘मैनिक’ या ‘हाइपोमैनिक’ अवस्था में व्यक्ति अति‑उत्साही, कम‑नींद‑में‑भी‑ताज़ा, तेज़ बोलने‑सोचने वाला और जोखिम‑प्रिय हो सकता है; ‘डिप्रेसिव’ अवस्था में वही व्यक्ति निराश, सुस्त, आत्मग्लानि से भर जाता है। ये चक्र सप्ताहों से महीनों तक चल सकते हैं और बिना उपचार जीवन की पढ़ाई‑नौकरी‑रिश्तों को तहस‑नहस कर देते हैं।
एपिडेमियोलॉजी बताती है कि विश्व में करीब 1‑2 % लोग किसी न किसी बाइपोलर स्पेक्ट्रम पर हैं, पर अक्सर देर से निदान होता है क्योंकि हाइपोमैनिया ‘सामान्य खुशमिज़ाजी’ समझकर अनदेखी हो जाती है। अनुवांशिक जोखिम सर्वाधिक है – प्रथम‑डिग्री रिश्तेदार में हो तो जोखिम दोगुना. मस्तिष्क अनुसंधान में प्रीफ्रंटल‑लिंबिक सर्किट की असंतुलित गतिविधि, डोपामिन‑ग्लूटामेट रिलेशन और सर्कैडियन जीन में बदलाव पाए गए हैं। नींद‑वंचना, बसंत‑या‑पतझड़ जैसे मौसमी परिवर्तन, प्रसव‑के‑बाद हार्मोन लहर, तथा मादक पदार्थ प्रचलित ट्रिगर हैं।
निदान DSM‑5 मानकों पर आधारित विस्तृत इतिहास, मनोदशा चार्ट और परिवार/मित्र रिपोर्ट से बनता है। साइक्लोथाइमिया और बॉर्डरलाइन व्यक्तित्व लक्षण को अलग करना महत्वपूर्ण है ताकि सही दवा‑योजना बने।
उपचार का प्रथम स्तम्भ दवा है: लिथियम (आत्महत्या घटाने में गोल्ड‑स्टैंडर्ड), वालप्रॉयिक एसिड या कार्बामैज़ेपिन (तीव्र मिक्स्ड या रैपिड साइक्लिंग), लैमोत्रिजीन (डिप्रेसिव प्रोफाइल), और एटिपिकल एंटीसाइकोटिक (ओलैंज़ापिन, क्वेटियापीन) मनिया में तेज़ राहत हेतु। एंटीडिप्रेसेंट प्रयोग सीमित और हमेशा मूड‑स्टेबलाइज़र के साथ ताकि स्विच न हो। थायरॉइड, किडनी व ब्लड लेवल मॉनिटर अति‑आवश्यक है।
दूसरा स्तम्भ मनोचिकित्सा: मनोदशा‑सचेत शिक्षा, संज्ञानात्मक‑व्यवहार थैरेपी (CBT) से नकारात्मक चक्र तोड़ना, इंटरपर्सनल & सोशल रिदम थैरेपी (IPSRT) से सोने‑जागने‑खाना‑काम का नियमित पटर्न। परिवार‑केंद्रित थेरेपी Expressed Emotion घटाती है, जिससे पुनरुत्थान दर कम होती है। डिजिटल ऐप (mood‑chart, sleep‑tracker) निरंतर निगरानी आसान बनाते हैं।
तीसरा स्तम्भ जीवन‑शैली एवं समर्थन: 7‑8 घंटे कठोर सोने‑जागने का समय, कैफीन‑अल्कोहल सीमित, सप्ताह में 150 मिनट एरोबिक व्यायाम, मेडिटेरेनियन‑आहार। विटामिन‑D व ओमेगा‑3 पूरक न्यूरो‑प्रोटेक्टिव सिद्ध हुए हैं। संकट‑योजना होनी चाहिए – शुरुआती चेतावनी (कम सोना, खर्च बढ़ना) पर डॉक्टर संपर्क, विश्वसनीय मित्र को सूचित करना।
रोजगार और शिक्षा में यथार्थवादी समायोजन – फ्लेक्सी आवर, कार्य‑ब्रेक, परीक्षा एक्सटेंशन – पुनर्नियमित जीवन संभव बनाते हैं। सेल्फ‑हेल्प समूहों और ऑनलाइन कम्युनिटी से अनुभव साझा कर प्रेरणा मिलती है।
यद्यपि बाइपोलर विकार जीवनभर निगरानी मांगता है, कोशिश और सहयोग से व्यक्ति रचनात्मक, उत्पादक और संतुलित जीवन जी सकता है। ‘रात‑दिन’ के इस सौर चक्र को पहचाना जाए तो उषा की लालिमा और संध्या की नीलिमा दोनों का सौंदर्य सुरक्षित रहेगा।