
ऑटिज़्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (ASD) मस्तिष्क के विकास का एक वैकल्पिक पैटर्न है, जिसमें सामाजिक‑संचार में चुनौतियाँ, सीमित व दोहराए जाने वाले व्यवहार तथा संवेदी विशिष्टताएँ एक साथ उपस्थित होती हैं। कोई बच्चा आँख मिलाने में हिचकिचाए, पर सौरमंडल का हर उपग्रह क्षणभर में गिना दे; कोई वयस्क भीड़ में दुआरभित हो जाए, किन्तु जटिल कोड में त्रुटि एक नज़र में पकड़ ले—ASD में ऐसी विषम क्षमताएँ आम हैं।
भारत में हाल के सर्वे आँकलन करते हैं कि प्रति 1000 शिशुओं में लगभग 8–10 किसी न किसी स्पेक्ट्रम पर हैं, पर वास्तविक संख्या अधिक हो सकती है क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों में पहचान कम होती है। आनुवंशिकी महत्त्वपूर्ण है—अनगिनत जीन छोटे‑छोटे प्रभाव डालते हैं—पर गर्भावस्था में वायरल संक्रमण, वायु प्रदूषण, और प्रसवपूर्व दवाओं के जोखिम भी रेखांकित किए गए हैं। फिर भी, किसी भी अकेले कारक से ऑटिज़्म “हो” जाता है, यह सरल चित्र नहीं।
निदान बहुआयामी होता है: माता‑पिता से विकास‑इतिहास, ADOS‑2/STAT जैसी मानक स्क्रीनिंग, भाषण‑व्यवहार अवलोकन। जल्द पहचान का अर्थ है—उचित हस्तक्षेप समय पर। अर्ली इंटेंसिव बिहेवियरल इंटर्वेंशन (EIBI), डेनवर मॉडल, या इंशेयर्ड ज्वाइंट अटेंशन गतिविधियाँ जुड़ाव बढ़ाती हैं। स्कूलों में विज़ुअल शेड्यूल, सामाजिक कहानी और सेंसरी ब्रेक ज़रूरी हैं; तंग यूनिफॉर्म की जगह मुलायम कपड़ा, शीघ्र ढेर भूगोल नहीं, रुचि आधारित यूनिट सीखना—ये छोटे परिवर्तन बड़ी राहत देते हैं।
किशोरों‑वयस्कों के लिए प्लान: सॉफ्ट स्किल ट्रेनिंग (सामाजिक संकेत पढ़ना, ई‑मेल टोन), कार्यशाला‑आधारित रोजगार कौशल (डेटा लेबलिंग, 3D मॉडलिंग), और सेल्फ‑ऐडवोकेसी समूह। संवेदनशीलता प्रबंधन हेतु, नॉइज़‑कैंसिलिंग ईयरफोन, गहरा दाब देने वाली जैकेट, या स्विंग चेयर शारीरिक सुकून देते हैं। को‑मोरबिडिटी जैसे चिंता, अवसाद, एडीएचडी को लक्षित CBT, ACT या दवा (लो‑डोज़ SSRI, मेलाटोनिन) से संभाला जाता है।
परिवार‑परामर्श, माता‑पिता को ABA के साथ संतुलन सिखाता है—केवल ‘उपवास’ करवाना लक्षण दबा सकता है, मुक्त खेल तथा आत्मसम्मान बढ़ाने वाली गतिविधियाँ समान रूप से महत्वपूर्ण हैं। भाई‑बहनों के लिए भी ग्रुप सपोर्ट आवश्यक है, ताकि वे भूमिका‑संघर्ष और जिम्मेदारी‑दबाव समझ सकें।
समाज में ‘न्यूरो‑डाइवर्सिटी’ दृष्टिकोण का फैलना परिवर्तनकारी है: भारतीय आईटी कंपनियाँ ‘आटिज्म‑@‑वर्क’ पायलट चला रही हैं; सरकारी नियम 4 % दिव्यांग आरक्षण के तहत स्पेक्ट्रम व्यक्तियों को शामिल करते हैं। डिजिटल उपकरण—AAC ऐप्स, सोशल‑इमोजी पैड, AR आधारित सोशल सिम्युलेशन—स्वतंत्रता को नई ऊँचाई देते हैं।
निष्कर्षतः, ऑटिज़्म कोई विफलता नहीं, बल्कि मस्तिष्कीय विविधता है। जब हम अनुकूल वातावरण, सहानुभूति‑परक नीतियाँ और कौशल‑उन्मुख प्रशिक्षण प्रदान करते हैं, तब ASD वाले व्यक्ति न केवल रोज़मर्रा के कार्यों में दक्ष होते हैं, बल्कि नवाचार और सृजन में समाज का पथप्रदर्शन भी कर सकते हैं।